बचपन पर भारी पड़ गया लॉक डाउन, कंधों पर सामान बेचने को मजबूर हुए

बचपन पर भारी पड़ गया लॉक डाउन, कंधों पर सामान बेचने को मजबूर हुए


#लॉकडाउन-में-मासूम-कंधों-पर-घर-की #जिम्मेदारी

साइकिल और कंधे पर खिलौने, सामान बेचने को निकल रहे मजबूर मायूम
 
आर मिश्रा
लखीमपुर-खीरी। "आया रे खिलौने वाला खेल खिलौने लेकर आया रे" यह गाना सत्तर के दशक में आई एक फिल्म बचपन में दिखाया गया था। मौजूदा लॉकडाउन के समय में रोजाना कमा कर खाने वाले परिवार के मासूम बच्चों पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है। इनको देखकर लगता है कि यह लोग अपना बचपन बेच कर घर गहस्ती चलाने निकले हैं। ऐसे ही मासूमों से जब हिन्दुस्थान समाचार के संवादाता की मुलाकात हुई उनका दर्द उनकी आंखों से छलक उठा।
 
पहली मुलाकात शहर के चांदमारी रोड पर रहने वाले बारह साल के जावेद और उनका छह साल का छोटा भाई जुनेद से हुई जो साइकिल और कंधों पर खिलौने और सामान बेचने को लॉकडाउन में मजबूर हैं। तपती दुपहरी में चार पैसे मिलने की आस में दिभर भटते इन दोनों मासूम भाइयों को शहर की गलियों में देखा जा सकता है। इनके पिता उमरखान कबाड़ का काम करते थे। लॉकडाउन में वह बंद हो गया। जिसके बाद घर में  रोटी की किल्लत हो गई। ऐसे में घर के दोनों मासूम बच्चों ने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उठाई है। दोनों भाई घर पर प्रयोग होने वाले छोटे सामान और खिलौने लेकर सुबह से ही पसीना बहाने लगते हैं और शाम के खाने का इंतजाम करने में जुट जाते हैं। घर में तीन भाई तीन बहन है पिता बीमार भी चल रहा है। ऐसे में आठ लोगों के परिवार की जिम्मेदारी इन पर है। 


 ऐसे ही दूसरी मुलाकात नई बस्ती में रहने वाले निहाल से हुई। निहाल कक्षा चार का छात्र है उसके पापा वर्कशाप में काम करते थे। इन दिनों वह भी खाली बैठे हैं। ऐसे में दो बहनों सहित पांच के परिवार का भरण-पोषण करने को निहाल रोज घर में बने मास्क बेचने निकलता है। मास्क बनाने के काम में पूरा परिवार जुटता है। बेंचने का जिम्मा मासूम बेटे पर है। बेटा सड़क के किराने और दुकान-दुकान जाकर किसी तरह से 50 से साठ रुपए कमा कर लाता है। इसी से परिवार की भूख मिट रही है।

इस कोरोना संकट में सिर्फ यही मासूम नहीं जो आज चिलचिलाती धूप में अपने बचपन को बेचते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे दर्जनों बच्चे शहर की सड़कों पर यदा-कदा दिख ही जाते हैं परन्तु प्रशासन के जिन कंधों पर इन मासूमों के बचपन को बचाने की जिम्मेदारी है उन्हें शायद यह सब दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में बचपन बचाने की जो मुहिम शासन द्वारा चलाई जा रही है उस पर साफ-साफ पलीता लगता दिखाई दे रहा है जो बच्चे सुबह से ही अपने परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर रोजी रोटी कमाने इस चिलचिलाती धूप में सड़कों पर घूम रहे हैं। उनके स्कूल जाने या पढ़ाई करने की बात करना ही बेमानी होगा।

क्या बोले हैं जिम्मेदार

इन मासूमों के मजदूरी करने की बात जब सहायक श्रम आयुक्त खीरी अखलाक अहमद से की गई तो उन्होंने कहा कि वह सिर्फ उन्हीं की मदद कर सकते हैं जो श्रम विभाग में पंजीकृत हैं या फिर उन्हें कोई मिल मालिक या होटल वाला या कोई अन्य जबरदस्ती बंधक बनाकर काम करा रहा हो, या उनसे ऐसा कोई कार्य कराया जा रहा हो जिससे उनकी जान को खतरा है। इसके अतिरिक्त वह और कुछ नहीं कर सकते। हां उन्होंने यह आश्वासन जरूर दिया अगर ऐसे लोग उनके पास आएंगे तो वह उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश करेंगे।


Comments