पाबंदियों के बीच मुसलमानों ने लिया इंसानियत का ये फैसला
फैज़ी खान केडीएस न्यूज़ नेटवर्क
हरदोई- हुसैनियत इंसानियत की वो मिसाल है कि दुनिया के हर सूबे हर शहर में साथ इज़्ज़त के हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासों का नाम लिया जाता है, हक़ के ख़ातिर इंसानियत के लिए इमाम हुसैन ने शहादत पेश की,मोहर्रम की दस तारीख़ को उनको शहीद किया गया, उस रोज़ त क़यामत तक मुसलमानों ने इस महीनों को गम के महीनें में शुमार कर दिया।
हालांकि हर साल की शुरुवात खुशी के साथ होती है लेकिन इस्लामिक कलेंडर में पहला महीना मोहर्रम का है जिसकी शुरुवात, ग़म, अलम ताजियादारी, नोहा मर्सिया और मजलिस के साथ होती है।
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चूंकि इमाम हुसैन ने अपनी जान को किसी धर्म किसी जात के लिए नही बल्कि इंसानियत के ख़ातिर क़ुरबान किया लिहाज़ा ऐसा कोई मुल्क नही है जहां इमाम हुसैन की इस शहादत को लेकर लोग ग़मज़दा न होते हो।
सदियों से रवायत चली आ रही है, लेकिन इस मर्तबा हालात कोरोना की वजह से अलग है, लिहाज़ा सरकार ने और फिर कोर्ट ने ये हिदायत दी कि 8 से 10 मोहर्रम के अशरे के दौरान होने वाले मातम, ताज़िया पर रोक लगा दी, ताकि कम्युनिटी स्प्रीट न हो सके।
कोरोना का दौर है और हर कोई इस मुसीबत से दो चार हो रहा है, लिहाज़ा ज़माने से इस रवायतें को चलाने वाले मुसलमानों ने इस मर्तबा फैसला किया है कि किसी भी तरह का कोई मातम ताज़िया नही निकलेगी, बल्कि मोहर्रम की दस तारीख़ को सभी के ताज़िये इमामबाड़े में पहुंच जाएंगे, वहां से पहले से चिंहित दो से 4 लोग गाड़ी में ताज़ियो को ले जाकर कर्बला में तदफ़ीन करेंगे।
डॉक्टर फ़राज़ रिज़वी कहते है हुसैनियत इंसानियत की मिसाल है लिहाज़ा हम तमाम सरकारी आदेशो का पालन करते हुए मोहर्रम का गम जता लेंगे, अगले बरस अगर हालात ठीक हुए तो हमेशा की तरह चीज़ों को सुधार लेंगे।
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