PROUD ANJALI- कैसे संभाली अंजली ने पति की मौत के बाद दो बेटियों की जिम्मेदारी

कैसे संभाली अंजली ने पति की मौत के बाद दो बेटियों की जिम्मेदारी



अंकुर श्रीवास्तव केडीएस न्यूज़ नेटवर्क

लखीमपुर-खीरी। पति  की मौत के बाद अचानक से परिवार को चलाने व दो बेटियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी को निभाने के लिए भले ही उस समय अंजली तैयार नहीं थी, लेकिन समय ने उन्हें इतना मजबूत कर दिया कि वह आज अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा तो दे ही रही हैं, वहीं परिवार की पूर्ण जिम्मेदारी भी अपने कंधों पर संभाल रखी है। परिवार को परेशानियों से उभारने व घर का मुखिया न होने के बाद भी अपनी जिम्मेदारी किस कदर निभानी चाहिए, यह बात कोई भी अंजली गुप्ता से सीखे। अंजली तमाम महिलाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत हैं। कहते भी हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा योद्धा मां ही होती है। अंजली अपने परिवार को चलाने के लिए करीबन रोज 32 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद अपने घर पहुंचती हैं और बिना आराम किये हुए अपनी दुकान खोलती हैं। बता दें कि उक्त महिला पेशे से अनुदेशक हैं लेकिन पति न होने के चलते उनके घर का गुजर बसर नहीं होता है इसलिए वह अपनी दो बेटियों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा देने के लिए रोजगार कर उन्हें कुछ बनाना चाहती हैं। फिलहाल उनके इस जज्बे की चहुंओर प्रशंसा की जा रही है।


कहते हैं कि महिला यदि अपने पर उतर आये तो वह किसी भी मुसीबत का सामना कर सकती है, फिर चाहे समस्या परिवार को पालने की हो या फिर कोई और! महिला के कंधों पर परिवार को पालने का बोझ पड़ता है तो खुद ही पहाड़ बनकर सामने डट कर मुकाबला करती है। ऐसा ही एक मामला शहर के बीचोबीच का है। जहां पर वर्ष 2010 में किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे आलोक कुमार गुप्ता निवासी मोहल्ला बरखेरवा का देहांत हो जाता है और घर का सारा बोझ मृतक की पत्नी अंजली गुप्ता पर आ गया। अब वह घर का राशन पानी भरायें या फिर दो बेटियों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए फीस आदि का इंतजाम करें। बता दें कि अंजली गुप्ता ब्लाक फूलबेहड़ के एक स्कूल में बतौर अनुदेशक के पद पर कार्यरत हैं, जहां से उन्हें महज सात हजार रुपये मिलते हैं। किराये के मकान में रहकर कुछ समय तक तो किसी तरह से अंजली ने अपना व अपनी बेटियों को पाला। लेकिन बेटियों को अच्छे कालेज में दाखिला दिलाने, उनकी शिक्षा पर होने वाले खर्च को उठाने में वह सक्षम नहीं हो पा रही थी, कि तभी उन्होंने कोई अन्य रोजगार करने की ठानी। यह उनके लिए सहज नहीं था लेकिन अंजली ने हार नहीं मानी। हुआ यूं कि कुछ समय बीतने के बाद अंजली ने अपनी दो बेटियों आयुषी व शुभी गुप्ता जो कि 11 व कक्षा 9 की छात्रा हैं। अंजली ने छोटी को अच्छी शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से छोटी बेटी शुभी गुप्ता को सनातन धर्म बालिका विद्या मंदिर में दाखिला दिलाया, वहीं बड़ी बेटी फूलबेहड़ स्थित एक इण्टर कालेज में अध्ययनरत है। अंजली गुप्ता हर रोज करीब 16 किलोमीटर जाने व  इतना ही घर वापस आने के लिए सफर तय करती हैं, जिसके बाद वह बिना किसी आराम किये हुए वह अपनी दुकान का सामान तैयार करने में जुट जाती हैं। अंजली एक कबाब पराठे का स्टाल लगाती हैं। हर रोज शाम को करीब चार बजे से स्टाल पर पहुंचकर देरशाम करीब नौ बजे तक अंजली अपनी दुकान पर सामान को बेंचकर होने वाली आमदनी से परिवार को चलाने के साथ-साथ बेटियों को शिक्षा दिलाने का काम करती हैं। अंजली ने राष्ट्रीय सहारा से हुई खास बातचीत के दौरान बताया कि उनके पति आलोक का देहांत होने के बाद से वह बिल्कुल टूट गयी थी। लेकिन उनकी बेटियों ने कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें सहारा दिया। जिसका आज यह नतीजा है कि वह अपने व अपनी बेटियों के लिए कुछ कर पा रही हैं। कहती हैं कि स्कूल से मिलने वाली तनख्वाह में से तो कुछ बच नहीं पाता है क्योंकि आटो से आने जाने व मकान का किराया देने में सारा पैसा उड़ जाता है। रही बच्चों की पढ़ाई, फीस सहित अन्य खर्चे वह इसी रोजगार से निकालती हैं। उनका कहना है कि कभी कभी उनकी छोटी बेटी भी इस काम में उनकी मदद करती है। फिलहाल अंजली व उनकी दोनों बेटियां उन महिलाओं के लिए मिसाल बनी हुई हैं जिन पर जरा सी तकलीफ को सहन नहीं पर पाती हैं।



बेटों से कम नहीं है अंजली की दोनों बेटियां


एक तरफ जहां तमाम लोग बेटे व बेटियों में फर्क करते हैं। कहीं-कहीं तो लोग लड़के के पैदा होने पर जमकर उल्लास करते हैं वहीं लड़कियों के पैदा होने पर उनके चेहरे की मायूसी नजर आने लगती है। इधर दूसरी तरफ शहर की रहने वाली महिला अंजली अपनी दोनों बेटियों पर नाज करती हैं। उनका कहना है कि उनकी बेटियां किसी बेटे से कम नहीं है। कहती हैं कि शुभी व आयुषी के पिता का देहांत होने के बाद दोनों ने मुझे कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। यही कारण है कि मुझे अपनी बेटियों पर फर्क महसूस होता है।


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