BAREILLY- पागलपन का शिकार मरीज व्यक्ति को अब मानसिक अस्पताल मे अकेला छोड़कर नहीं जा पाएंगे परिजन- डॉ. सीपी मल्ल

पागलपन का शिकार मरीज व्यक्ति को अब मानसिक अस्पताल मे अकेला छोड़कर नहीं जा पाएंगे परिजन- डॉ. सीपी मल्ल





देव श्रीवास्तव केडीए न्यूज़ नेटवर्क
बरेली- पागलपन का शिकार हुए व्यक्ति की हरकतों से अगर उसके परिवार के लोग परेशान हैं और उसे मानसिक चिकित्सालय या कहें पागल खाने में भर्ती करा कर अकेले छोड़ देना चाहते हैं तो अब ऐसा कर पाना संभव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब मेंटल हॉस्पिटल में मानसिक बीमार व्यक्ति को भर्ती कराने के बाद उसके परिवार के किसी एक सदस्य को उसके साथ रुकना आवश्यक है, ऐसा करने से मना करने की स्थिति में मरीज को भर्ती नहीं किया जाएगा और अगर मानसिक बीमार व्यक्ति के परिजन अपने मरीज को भर्ती कराना चाहते हैं तो उसके लिए उसे क्या करना है? क्या नहीं करना है? कैसे करना है? इस मामले पर आपके संचय को हम आज दूर करने जा रहे हैं।

अगर आपके घर में या परिवार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो मानसिक बीमारी का शिकार हो गया है और यह बीमारी उस पर अधिक हावी हो गई है और घर के लोग उससे परेशान रहने लगे हैं तो आपके जहन में भी यह सवाल आता होगा कि इसे मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया जाए। ऐसे में आपको उस प्रक्रिया की जानकारी की जरूरत होती है जिससे आप सही तरीके से बीमार व्यक्ति का इलाज करा सकें। तमाम तरह के सवालों को लेकर कुछ स्टूडेंट अपनी ट्रेनिंग के दौरान टी टाइम में मानसिक चिकित्सालय बरेली के डायरेक्टर डॉ. सीपी मल्ल के पास पहुंचे तो उन्होंने बताया कि अगर कोई भी व्यक्ति मानसिक बीमारी से ग्रस्त है और उसके बाद वह व्यक्ति एग्रेसिव होकर किसी को भी नुकसान पहुंचाने लगता है ऐसे मरीजों से भी डरने की जरूरत नहीं है। घर रहकर भी इनका इलाज हो सकता है, परंतु ऐसा करने में अपने आपको अगर घरवाले असमर्थ पा रहे हैं तो उसके लिए वह उसे चिकित्सालय में भर्ती करा सकते हैं परंतु सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार अब परिवार के एक सदस्य को मरीज के साथ रुकना आवश्यक है लेकिन ऐसे में यह सवाल भी बनता है कि अगर उस व्यक्ति को इलाज में लंबा वक्त लगने वाला है तो परिवार क्या करें! यह सवाल भी जब हमने डॉ सीपी मल्ल से पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कम से कम एक माह इलाज कराने के बाद अगर चिकित्सकों को ऐसा लगता है कि मरीज के परिवार के साथ रहने में अभी भी खतरा है, परिवार के किसी सदस्य को वह नुकसान पहुंचा सकता है तो ऐसी स्थिति में चिकित्सीय आकलन के बाद उसे भर्ती कर लिया जाता है और परिवार के किसी भी सदस्य को रुकने की जरूरत नहीं होती है। परिवार का सदस्य जब चाहे तब मरीज से मिलने आ सकता है मरीज की देखभाल के लिए चिकित्सालय में अटेंडेंट पहले से ही मौजूद हैं। 

एक सवाल यह भी था कि क्या कोई भी व्यक्ति सीधे मानसिक चिकित्सालय बरेली पहुंचकर मरीज को दिखा सकता है? जी हां यहां हर अस्पताल की तरह ओपीडी चलती है जहां मरीज को कार्य दिवसों में दिखाया जा सकता है। चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार मरीज की घर में भी देखभाल की जा सकती है, विषम परिस्थितियों में चिकित्सक यह निर्धारित करता है कि मरीज को कैसे उपचार की आवश्यकता है।

मरीज के साथ भेदभाव भी इलाज में है बाधक


मानसिक रोगियों से ज्यादातर लोग उसके परिवार सहित यह सोंचते हैं कि इससे दूर रहा जाए। कुछ हद तक यह सही है परंतु इसका यह कतई मतलब नहीं है कि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को पूरी तरह से अकेला छोड़ दिया जाए और उसकी परवाह न की जाए। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को एक अच्छी काउंसलिंग की जरूरत होती है उसके लिए परिवार का सदस्य भी कर सकता है यह जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य एक आम व्यवहार करें।

 उन्होंने कहा कि एक सामान्य व्यक्ति से भी ऐसा व्यवहार किया जाए जो यह प्रदर्शित करें कि घर के लोग उसे अहमियत नहीं दे रहे हैं तो एग्रेसिव होना या कहें गुस्सा होना एक आम बात है। जब एक सामान्य व्यक्ति इस नेचर से नहीं बचता तो मानसिक बीमार व्यक्ति को आप कैसे इस नेचर से दूर रख सकते हैं। परिवार के लोगों का बहुत अहम रोल होता है मानसिक व्यक्ति की बीमारी को सही करने में। जरूरी है कि हम इन बातों को समझें और इस पर अमल भी करें।

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