किसी पागल के लिए बेटा तो किसी के लिए भाई और किसी के लिए पिता बन गए हैं अटेंडेंट सलीम अहमद

किसी पागल के लिए बेटा तो किसी के लिए भाई और किसी के लिए पिता बन गए हैं अटेंडेंट सलीम अहमद




मेंटल हॉस्पिटल की रुला देने वाली कई कहानी


देव श्रीवास्तव केडीएस न्यूज़ नेटवर्क

बरेली- मेंटल हॉस्पिटल जिसका नाम सुनते ही आपके जहन में तमाम तरह की फिल्मी कहानियां घूमने लगती होंगी। इसी मेंटल बीमारी से जुड़ी हुई एक कहानी फिल्म भूल भुलैया आपके जेहन में जरूर नाचती होगी। लेकिन इस मेंटल हॉस्पिटल की कहानी शायद इन फिल्मों से काफी अलग है आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से रूबरू कराने जा रहे हैं जो मानसिक बीमारी से ग्रस्त मरीजों या कहें पागलपन का शिकार हुए मरीजों के परिवार से भी ज्यादा इन मरीजों के अज़ीज हैं। 


आपने फिल्मों में पागल खानों के दृश्य भी देखे होंगे। यह पागल खाने फिल्म में जिस तरह से आपको रुलाते हैं। कुछ ऐसा ही इनमें होता भी है। वर्तमान परिस्थितियों में मेंटल हॉस्पिटल के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। अगर हिंदी में कहें तो मानसिक चिकित्सालय हालांकि सरकारी उदासीनता के चलते प्रदेश में बेहद बदतर हालत में यह पहुंच गए हैं और मानसिक बीमारियों को देखते हुए प्रदेश में सिर्फ तीन अस्पताल ही बने हैं। ऐसे में मेंटल हॉस्पिटल बरेली प्रदेश में मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यहां पर काम करने वाले डॉक्टर सहित पैरामेडिकल स्टाफ सहायक और कर्मचारी भी बधाई के पात्र हैं क्योंकि उनके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है वह किसी महत्वपूर्ण समाज सेवा से कम नहीं है।


मेंटल हॉस्पिटल की कहानी में एक शख्स ऐसा भी है




एक ऐसे ही व्यक्ति से हम आपको आज रूबरू कराने वाले हैं, हम आपको इनका नाम बताएं उससे पहले हम इनका परिचय आपको देंगे। करीब 15 सालों से इस मानसिक चिकित्सालय में यह बतौर अटेंडेंट (सेवक) काम कर रहे हैं और इनका नाम है #"सलीम #अहमद" जो इन मानसिक बीमारी से ग्रस्त मरीजों के परिवार के ही सदस्य बन गए हैं। सलीम अहमद एक ऐसा नाम है जिसे हर मानसिक रोगी या कहें पागल जानता है हालांकि पागल शब्द का इस्तेमाल हमें नहीं करना चाहिए, परंतु इस शब्द का इस्तेमाल हम सिर्फ आप को समझाने के लिए कर रहे हैं। अगर सलीम जी की कार्यशैली की बात की जाए तो उदारवादी स्वभाव होने के साथ ही वे बेहद भावनात्मक भी हैं। मरीजों के इतना करीब हैं कि मरीज अपना दुख दर्द भी उनसे साझा करते हैं। अगर परिवार से मिलने का मन होता है तो इनके ही फोन से इन मानसिक रोगियों की बात अपने परिजनों से होती है। हमारी मुलाकात भी इत्तेफाकन सलीम अहमद से हुई और उनके क्रियाकलापों ने हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया जिसके बाद उसे हमारी बात होना स्वाभाविक था उन्होंने कई मानसिक रोगियों का परिचय भी करवाया और उनसे हमारी बात भी करवाई परन्तु हम नियमों से बंधे होने के कारण आपको उनका नाम नहीं बता सकते, परंतु यह जरूर बता सकते हैं कि जिस तरह के संबंध उन मरीजों और सलीम अहमद के बीच दिखे वह वास्तविकता में आपको इस सोंच में जरूर डाल देंगे। एक ऐसा व्यक्ति जो उनके इलाज के दौरान उनसे मिला या कहें उनके इलाज की व्यवस्था करता है वह उनके परिवार का सदस्य हो गया है। 




इस दौरान सलीम जी ने हमें कई ऐसे किस्से भी बताएं जो कहीं ना कहीं हमारी और आपकी रूह को झकझोर देंगे। यह सवाल उठाएंगे क्या मानवता आज खत्म हो गई है। लोग अपनों के साथ इस तरह का व्यवहार कर सकते हैं। कई किस्से तो ऐसे हैं जिन्होंने हमारी आंखों को नम कर दिया। मानसिक बीमारी से ग्रस्त होने के बाद परिवार वालों ने कभी अपने कलेजे के टुकड़े तो कभी बेटे ने अपने मां-बाप, पत्नी ने अपने पति और पति ने अपनी पत्नी तो कभी बहन ने अपने भाई और कभी भाई ने अपनी बहन को छोड़ दिया। यह किस से यहीं खत्म हो जाते तो कोई बात नहीं परंतु कहानी इसके आगे भी थी इलाज के लिए छोड़े गए यह अपने कई बार इस जगह से अंतिम विदाई लेकर जाते हैं।


सलीम अहमद को 15 सालों में मिले है छह प्रशस्ति पत्र


हमने जब सलीम अहमद के बारे में और जानकारी की तो हमें पता चला कि उन्हें शासन प्रशासन और विभाग द्वारा 15 सालों में उनके कार्यों को लेकर 6 प्रशस्ति पत्र दिए गए हैं जो यह बताने के लिए काफी है कि सलीम अहमद अपने काम को बेहद निष्ठा और ईमानदारी से करते हैं सिर्फ इतना ही नहीं उनके योगदान को विभाग व प्रशासन के बड़े-बड़े अधिकारियों द्वारा समय-समय पर सराहा भी जाता है और सबसे बड़ी बात कि इस कार्य को वह एक समाज सेवा समझकर करते हैं।


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